आज़ादी जो मुझें नहीं समझी

रोंगटे खडे हो जाते है मेरे,
जब मैं देखता हू खुले आसमां में,
तिरंगा शानसे लहरा रहा हैं,
मेरी आंखे भी व्यस्त किसी उडान में।
मुझे वक़्त कहा हैं नीचे देखने का?

मुझे अभिमान है मेरे देश का,
जिसने मुझे एक गौरवपूर्ण पहचान दी।
मुझे आसमान में उडने की आजादी थी,
पर… इनके भाग्य में क्यू बरबादी थी?

आजादी. .. जो मुझे सपने देखने की,
उन्हे साकार करने की इजाजत देती है।
पर वो मुझे क्यू नहीं सिखाती की,
देश की आधी आबादी भूखी सोती है?

आजादी, जो मुझे कामयाबी का जश्न
मनाने देती है ख़ुशी से,
फिर भी क्यू हमारे अन्नदाता-
खुद को समाप्त करते है- खुद्खुशी से?

मेरे श्रेष्ठतम संविधान ने
सभी को एक समान आजादी का हक़ दिया है;
यह मैने स्कूल मे पढा था।
फिर क्यू एक तरफ़ आसमान को छूती इमारते,
और चांद पर बसते सैटेलाईट;
तो दुसरी तरफ गरिबी और अन्याय से दबे लोग,
सुलगता गुस्सा, और पनपते नक्सलाईट?

आजादी वो नहीं जो दुसरो का हक़ छिनकर
हमें औरोसे श्रेष्ठ दिखाती हैं।
आजादी वो है, जो हमें दुसरो की आजादी का भी
सम्मान करना सिखाती है।