चलों, एक रास्ता वहां बनाये
चलों , एक रास्ता वहां बनाये,
जहाँ रास्ता न हो।
वहाँ कुछ नन्ही आँखे हमारा इन्तजार
कर रही है ,
के हम वहां आयेंगे तो
उनकी आँखों में हँसी खिलेगी।
मक्खियोसे घिरी हुई उनकी जख्मों को
शायद थोडीसी ठंडक मिलेगी।
चलों , एक रास्ता वहां बनाये,
वहां, कूड़े -कचरें में अपनी रोटी ढूंढनेवाले
कुछ साथी मिलेंगे,
हमारे वहां जानेसे शायद उन्हें
रातको भी रोटी मिलेगी।
चलों , एक रास्ता वहां बनाये,
वहां कुछ मासूम चेहरे है,
अपनी हड्डियों को चमड़ी से लपेटे हुए,
हमारे वहां जाने से शायद
विटामिन की कमी से धुन्दली हुई उन आंखोंमे
कुछ चमक तो आ जाएगी।
चलों , एक रास्ता वहां बनाये,
वह अँधेरे कमरे में एक बुढा,
खाँसी से परेशान .. नहीं, शायद
उसे चिंता है की – वो मजदूरी नहीं करेगा तो
बेटी की शादी कैसे होंगी ?
चलों , एक रास्ता वहां बनाये,
वहां लोगों की चीखें सुनी नहीं है किसीने ,
मेहनतकशों के पसीने को पानी का मोल मिलता है वहां,
शायद वहां हमारा पसीना हरियाली उगायें।
चलों , एक रास्ता वहां बनाये,
वहां एक सोलह साल की लड़की,
अपने पहले बच्चे को जन्म देने की लाख कोशिश करती,
अश्रु- स्वेद -रक्तरंजीत,
शायद हमने बनाये रास्ते से वो बच जाएँ।
चलों , एक रास्ता वहां बनाये,
वहां लोगों को पता नहीं की
आज़ादी क्या है,
क्योंकि वो इतनी सस्ती है की
उसे बेचकर पेट की आग नहीं बुझती।
शायद हम वो आग बुझादे।
चलों , एक रास्ता वहां बनाये,
क्योंकि बने- बनाये रास्ते पर तो हर कोई जाता है,
लेकिन किसी ने कहा है की —
A ROAD DIVERGED IN A WOOD,
I CHOSE ONE WHICH IS LESS TRAVELED BY,
THAT MADE THE DIFFERENCE.
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